रांची:
जेल में सज़ा काटने के दौरान मशहूर शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ ने ‘हम देखेंगे’ नज़्म लिखी थी। उसे पाकिस्तान में बैन कर दिया गया था। तब जि़या उल हक़ की हुकूमत थी। लेकिन 13 फरवरी, 1986 को पहली बार जब जानी मानी गायिका इक़बाल बानो (Iqbal Bano) ने हजारों लोगों के सामने इसे अपनी आवाज़ दी तो पाकिस्तान के तानाशाह जि़या उल हक़ की नींद उड़ गई थी।
वही नज़्म अब कई सालों से भारत में गूंज रही है। इसके ही टाइटल ‘हम देखेंगे’ (Hum Dekhenge) के नाम से प्रगतिशील लेखक संघ, जनवादी लेखक संघ और झारखण्ड जन संस्कृति मंच 30 जनवरी से जन अभियान शुरू करने जा रहा है।
वर्चुअल मीटिंग में लिया गया निर्णय
जसम के अनिल अंशुमन ने बताया कि महात्मा गांधी शहादत दिवस पर 30 जनवरी को ‘अहिंसा, न्याय और संविधान की रक्षा’ के लिए लेखक- कलाकारों के अखिल भारतीय सांस्कृतिक प्रतिरोध अभियान ‘हम देखेंगे, हम बोलेंगे’ की शुरुआत होगी। मोरहाबादी स्थित गांधी प्रतिमा के पास कार्यक्रम दोपहर 12 बजे से शुरू किया जाएगा। इसका निर्णय वर्चुअल मीटिंग में किया गया।
खतरों और चुनौतियों से एकजुट मुकाबला करना जरूरी: रविभूषण
इस संबंध में वर्चुअल मीटिंग रखी गई थी। जिसकी अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार व जन संस्कृति मंच के राष्ट्रिय कार्यकारी अध्यक्ष रविभूषण ने ‘हम देखेंगे’ अभियान के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि वर्तमान के सांस्कृतिक खतरों और चुनौतियों से एकजुट मुकाबला करना एक सामाजिक ज़रूरत है।
कवि-लेखक रणेंद्र, आदिवासी लेखक महादेव टोप्पो, प्रलेस के प्रो. मिथिलेश, कथाकार पंकज मित्र, जसम के जेवियर कुजूर, अनिल अंशुमन, महिला एक्टीविस्ट डाॅ. किरण, साहित्यकार डाॅ. अजय वर्मा के अलावा प्रो. रिजवान अंसारी, वीणा श्रीवास्तव और अपराजिता ने अपने विचार रखे। संचालन जलेस के एमज़ेड खान ने किया। बैठक में वीरेन्द्र, शालिनी शाबू, ललित, आलमआरा, विकी मिंज, तनवीर मिर्दाहा, फिरदौस जहां, नाहिद, मौलाना गुफरान अशर्फी, मो. शारिब और मो. मुर्शिद इत्यादि भी शरीक हुए।